national jagruk 2024-04-19 06:12:29
Climate Change: बर्लिन। जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को अगले 25 वर्षों में लगभग 19 प्रतिशत आय कमी और GDP में 17 फीसदी की गिरावट का सामना करना होगा। भारत जैसे दक्षिण एशियाई देशों में यह नुकसान 3 फीसदी ज्यादा 22 फीसदी तक होगा। जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन में यह दावा किया गया है। ‘नेचर’ मैग्जीन में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, वायुमंडल में पहले से ही मौजूद ग्रीन हाउस गैसों (Green House Gas) से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2049 तक प्रति वर्ष लगभग 38 लाख करोड़ डॉलर का नुकसान हो सकता है।इस नुकसान का आकलन खेती, बुनियादी ढांचे, उत्पादकता और सेहत को होने वाली क्षति के आधार पर किया गया है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पिछले 40 वर्षों के दौरान वैश्विक स्तर पर 1,600 से अधिक इलाकों के विस्तृत मौसम और आर्थिक आंकड़ों का अध्ययन किया। अध्ययन में कहा गया है कि, विभिन्न जलवायु परिदृश्यों और डेटा में अनिश्चितताओं के आधार पर वैश्विक आय हानि 11 प्रतिशत से 29 प्रतिशत के बीच हो सकती है।जहां सबसे ज्यादा नुकसान, वह सबसे कम जिम्मेदारजलवायु परिवर्तन (Climate Change) के चलते अगले 25 वर्षों के भीतर लगभग सभी देशों में बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान होना तय है। इसमें दुनिया के सबसे विकसित देश जैसे जर्मनी, फ्रांस और अमरीका जैसे अत्यधिक विकसित देश भी हैं और ग्लोबल साउथ के सबसे गरीब देश भी। पर इसका सबसे अधिक असर भूमध्य रेखा के नजदीक स्थित देशों पर देखने को मिलेगा, जो कि इस समस्या के लिए सबसे कम जिम्मेदार हैं। आशय यह कि दक्षिण एशिया और अफ्रीका सबसे अधिक प्रभावित होंगे। सबसे कम असर ध्रुवों के समीप स्थित देशों पर देखने को मिलेगा। पर विडंबना यह है कि इस समस्या के लिए सबसे कम जिम्मेदार और सबसे अधिक प्रभावित होने वाले देशों के पास इससे निपटने के लिए न्यूनतम संसाधन हैं।कार्बन उत्सर्जन कम करने की लागत नुकसान से छह गुना कमअध्ययन में कहा गया है कि पूर्व औद्योगिक युग (1850) के बाद से दुनिया का तापमान 1.1 डिग्री पहले ही बढ़ चुका है। आगे आने वाले करीब 25 सालों में वैश्विक स्तर पर औसत तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए जरूरी कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emission) को कम करने में आने वाली लागत तापमान बढ़ने से होने वाले नुकसान का छह गुना कम होगी।एक लाइन में है समस्या का हलअध्ययन में कहा गया है कि औसत तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए 2030 तक CO2 उत्सर्जन में 43 प्रतिशत की कटौती करने की आवश्यकता है। इसका एक ही उपाय है। अगर हम, कोयला, गैस और पेट्रोल-डीजल को जलाना बंद कर दें तो दुनिया का तापमान स्थिर किया जा सकता है।
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